आरक्षण की वर्तमान स्थिति का best निष्कर्ष 2021

आरक्षण क्या है

आरक्षण देने का दृष्टिकोण केवल यही था कि आर्थिक सामाजिक तथा सांस्कृतिक तरह से पीड़ित लोगों को समान जनजीवन प्रदान हो सके|

आजादी के 75 वर्ष गांठ में हम प्रवेश कर रहे हैं क्या आज भी हमें इसको लेकर चलना चाहिए यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर मिलना मुश्किल भी नहीं तो आसान भी नहीं| आरक्षण की वर्तमान स्थिति का

क्योंकि हाल में ही विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि विश्व में सर्वाधिक गरीब भारत में हैं इसके मुताबिक हमें इसकी की अत्यधिक आवश्यकता है क्योंकि इसका का मकसद ही नीचे तक लोगों को उठाना परंतु इसके बावजूद भी हम इतने पीछे क्यों हैं|

  • Save

यदि हम इसके के सात दशक से अधिक समय का अवलोकन करें तो पता चलता है कि देश की आजादी के समय अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और समान शिक्षा वर्ग में काफी असमानताएं थी |

आरक्षण
  • Save
आरक्षण

जिसे ध्यान में रखकर इसका समय 10 साल रखा गया ताकि जाति वर्गों के मध्य असमानताओं को दूर किया जा सके| इतना समय काफी नहीं रहा और इसी समय से आगे बढ़ाए जाने लगा|

सन 1980 में आयोग ने रिपोर्ट पेश की इसमें आरक्षण को 22% से बढ़ाकर 49.5 प्रतिशत वृद्धि की सिफारिश की गई यह सिलसिला यहीं नहीं रुका सन 1991 में हमारे नवे प्रधानमंत्री श्री नरसिंह राव की सरकार ने अगड़ी जातियों के गरीबों के लिए 10% का आरक्षण भी शुरू कर दिया|

जब इसकी संरक्षण की प्रक्रिया में तेज होने लगी केंद्र सरकार ने विभिन्न सामाजिक आर्थिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदाय के लिए पहली बार राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण किया राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण का आंकड़ा 32 % यह सर्वेक्षण 1998 में हुआ|

समय बदलता गया परंतु यह एक राजनीतिक मुद्दा बनता गया और सभी राजनीतिक पार्टियां को इसका संरक्षण मिलता रहा|

अब जब हम 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं तो इसका का बदलता स्वरूप नजर आ रहा है और आरक्षण पाने के लिए आंदोलन भी शुरू हो गए हैं

राजनीतिक पार्टियों के लिए एक चुनावी मुद्दा बन गया है और 2006 में शैक्षिक संस्थाओं में भी केंद्र सरकार ने भी इसको शुरू किया

आज जब भारत पूरे विश्व का प्रतिनिधित्व कर रहा है तब भी हमें आरक्षण रूपी संस्था का सहारा लेना चाहिए आज से सात दशक पहले जो केवल 10 साल के लिए बनाया गया था जिसे लोगों को समानता का अवसर मिले वही विफल होता नजर आ रहा है|

वर्तमान समय में आरक्षण

  • Save

आरक्षण

एक अवधी भाषा की कहावत है की “गए पूत जब मांगे पावा” अर्थात जब आपको बिना कुछ करे आप की आवश्यकताओं का सामान मिलने लगे तो आप मान कर चलिए आप पतंग के पथ पर अग्रसर है|

क्या हम इसका अर्थ इससे से नहीं निकाल सकते कि आरक्षण आपके लिए आर्थिक, सामाजिक स्थिति देखकर नहीं दिया जा रहा है|

बस आप SC/ST/OBC तो आप को समान रूप से आरक्षण दिया जाएगा| इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं की कोरोना महामारी के समय में अमीर और अधिक अमीर हुआ है जबकि गरीब और निचले स्तर पर आ गया परंतु इसके बावजूद भी हम सात दशक पुराने आरक्षण को दूर नहीं कर पा रहे हैं

हाल के दिनों में जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से उनकी राय मांगी है वह इस बात को दर्शाता है कि आरक्षण देने के लिए राज सरकारी अपनी राजनीतिक छवि को बढ़ाने के लिए इसका जो सहारा ले रही है वह संवैधानिक है!

इसके मद्देनजर कोर्ट ने भी इस पर उनका वक्तव्य मांगा है| कि यह कितना प्रतिशत किया जाए

इसे खत्म करने के लिए उच्च व्यक्तित्व की सोच का होना आवश्यक है?

निष्कर्ष

आज के समय में हम अगर आरक्षण के संदर्भ में देखें तो इसी यही प्रतीत होता है कि इसका उपयोग बस एक बिजनेस के तौर पर हो रहा है अगर हम इसी से बाहर निकलना है तो आरक्षण जाति के आधार पर हो परंतु बहुत सी जातियां हैं जो आर्थिक रूप से समृद्ध हैं इसके बावजूद उन्हें इसका लाभ प्राप्त होता है इन लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पाता तो सकता है

Leave a Comment

Share via
Copy link
Powered by Social Snap