आजादी के 70 साल बाद भी कृषि में किए गए अनेकों सुधार के बावजूद किसान आज सड़कों पर है| इसके अनेकों अनेक कारण है|
आइए जानते हैं इन 70 सालों में किसानों पर किए गए सुधार के परिदृश्य को देखें
आजादी के बाद पहली पंचवर्षीय योजना से आज तक किए गए परियोजना के बारे में जाने तो
-स्व प्रथम सन 1967 में हरित क्रांति आने के बाद पहली बार फसल की पैदावार पिछली पैदावार से 5 मिलियन टन से अधिक था| इसके बावजूद गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य आने वाले इन 3 सालों में 76 रुपए प्रति क्विंटल था|
भूमंडलीकरण से पहले यह न्यूनतम समर्थन मूल्य 200 रुपए प्रति कुंतल पर आ गया था| इसके विपरीत जब सन 1991 में वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन(WTO) स्थापना के बाद राष्ट्र का ध्यान खेती से हटने लगा |
यूएनसीटीएडी एक अध्ययन के अनुसार:-
1990 से 2010 के 20 साल की अवधि में उत्पादक मूल्य में कुछ खास परिवर्तन नहीं हुआ|
इसी बात को ध्यान रखते हुए किसान के बेहतर भविष्य के लिए
सन 2004 में डॉ. स्वामीनाथन अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई जिसका उद्देश्य किसानों की आय में वृद्धि किस प्रकार की जाए उन्होंने अपनी रिपोर्ट 2006 में प्रस्तुत किया
कृषि सुधार सिफारिश
- भूमि सुधार
- किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए
- सिंचाई के लिए
- फसल बीमा
- उत्पादन बढ़ाने के लिए
- खाद सुरक्षा
यह सभी सुधार हो जाए तो किसानों की आय बढ़ाने में बहुत ही परिवर्तनशील कदम होगा
यदि हमारी जीडीपी में कृषि का योगदान देखे तो 16% है| शायद इसलिए सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही है इसके बावजूद किसी द्वारा 41% रोजगार मुहैया कराया जाता है
यही नहीं यदि किसी के उत्पादन में 1% की वृद्धि होती है| तो परिणाम स्वरूप औद्योगिक क्षेत्र में 0.5% तथा राष्ट्रीय आय में 0.7% की वृद्धि होगी|
एनसीआरबी द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार:-
देश में कुल आत्महत्याओं में से 7.4 आत्महत्या किसानों द्वारा की जाती है
इन सभी परिणामों के स्वरूप यह औचित्य निकलता है| कि यदि हमें विकासशील से विकसित होना है|
तो हमें जमीनी स्तर पर काम करना पड़ेगा और पहले अपनी लोगों को सुदृढ़ संकल्पित बनाना होगा
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