हाल की कुछ समय में जिस प्रकार भूखे लोगों की मनोदशा हुई है के फलस्वरुप उनके मन में भय का समावेश घर कर गया है क्योंकि जिस तरह भय की लहर दस्तक दे रही है उससे लोग अपने भोजन का भय सताने लगा है इसका स्पष्ट रूप कोरोना की दूसरी लहर में लगे लॉकडाउन में पूरी तरह दिखाई पड़ता है इसका प्रत्यक्षदर्शी में खुद भी रहा हूं बहरहाल भूख और भोजन यह तो मनुष्य को जीने का मार्ग प्रशस्त करते हैं|
भूखे लोगों से होने वाली समस्या

यह बात सभी जानते हैं कि दुनिया में प्रतिदिन 24 हजार लोग बीमारी से नहीं बल्कि भूख से मरते हैं जिसमें से हम भारतीयों की संख्या एक तिहाई है इसका यह मतलब नहीं कि हमारे देश में अनाज की कमी है हाल ही के दिनों में दिए गए कृषि विभाग के आंकड़े के अनुसार 2020-21 में भारत में रिकॉर्ड 30 करोड़ 33 लाख तनी टन अनाज उत्पादन किया|
इसका दूसरा पहलू यह भी है कि हम भारतीय हर वर्ष 6.88 करोड़न भोजन बर्बाद करते हैं अगर इसे हम प्रति व्यक्ति देखी तो हर वर्ष 50 किलोग्राम भोजन बर्बाद होता है यह जानकारी फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2021 में अंकित है
देश की आजादी के बात से हम एक नारा सुनते आ रहे हैं गरीबी मिटाओ स्लोगन का उपयोग बहुत होता है परंतु भूख मिटाओ भोजन बचाओ का इतना प्रयोग नहीं सुना भूख मिटाना मनुष्य की पहली प्राथमिकता होती है|
यदि मनुष्य समय पर पेट नहीं भरेगा तो वह अपने भविष्य में आर्थिक और मानसिक से दवा ही रहेगा जिसके फलस्वरूप उसका ध्यान शिक्षा की तरफ बिल्कुल नहीं होगा यदि शिक्षा नहीं तो उसके समाज में अस्तित्व नगण्य हो जाता है|
एक आंकड़े के अनुसार एड्स मलेरिया टीवी जैसी बीमारियों से जितने लोग नहीं मरते उससे कहीं अधिक भूख से मर जाते हैं
चलिए आपको एक और आंकड़े से अवगत कराता हूं कृषि मंत्रालय द्वारा दिए गए आंकड़े में करीब 50 हजार करोड़ का अनाज बर्बाद हो जाता है यदि इतना आना बिहार जैसे राज्य की कुल आबादी का एक वक्त का भोजन होता है|
करोना जैसी वैश्विक महामारी में और बढ़ा दिया है आंकड़े सरकार के लिए एक साधन है जिससे वह लोगों तक पहुंच सके परंतु स्थिति तो इससे भी दयनीय है क्योंकि इससे मैं खुद भी भली-भांति अवगत हूं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की सभी जिम्मेदारियों सरकार के लिए है जन भागीदारी का योगदान बहुत अहम हो जाता है|
भोजन बर्बादी से प्रभाव
भोजन की बर्बादी को रोकना भूखे लोगों को पेट भरने के बराबर हो जाता है क्योंकि भोजन की बर्बादी से मनुष्य तो भूखा सोता होता ही है|
उसके दूसरी तरफ पर्यावरणीय क्षति की भी समस्या पर होने लगती है एक शोध के मुताबिक खाने की बर्बादी की वजह से ग्रीन हाउस गैसों में 8 से 10 फीसद तक इजाफा हुआ है|

ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन से जहां वैश्विक तापमान पड़ रहा है वहीं अनाज उत्पादन में भी इसका प्रभाव पड़ता दिखाई दे रहा है|
इस से जल स्रोत भी दूषित होता है और वह पेयजल के माध्यम से स्वास्थ संबंधी परेशानियों को जन्म देती है इस बात को ध्यान में रखते हुए भोजन की बर्बादी को रोकने से तो एक भूख तथा दूसरी भोजन की समस्या का निदान संभव है|
भूख का समाधान
यदि हम भूख की समस्या के समाधान के बारे में बात करें तो इसका समाधान वैश्विक स्तर पर चल रहा है भारत में भी कई संस्थाओं ने आगे आकर रोटी बैंक की शुरुआत की इसकी दूसरी तरफ भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ने आना बर्बाद करने वाले होटल रिश्ता और शादी करो पर 50 हजार का जुर्माना लगाने का विचार किया

हाल ही में अलीगढ़ होटल रेस्टोरेंट्स एसोसिएशन अनोखी पहले सबका ध्यान खींचा वहां के होटलों में थोड़ा भी भोजन ना छोड़ने वाले ग्राहक का बिल पर 5% की छूट मिलती ऐसे ही तेलंगाना के एक होटल में भोजन पचाने का अनोखा परिचय दिया जूठन छोड़ने से पर 50 रुपए का जुर्माना
यह तो ऐसी पहल है जो निकट भविष्य में भारत में मुझे सोने वाले लोगों की संख्या को घटा देगा तथा भोजन सही समय पर ना मिले के कारण मनुष्य को होने वाली अनेक समस्याओं का निदान कराने में अहम भूमिका निभाएगा
यदि मैं अपने विचार को साधारण करूं तो जनभागीदारी में इसका अहम योगदान होगा जिस तरह हरित क्रांति ने पादन के क्षेत्र में अपना अहम योगदान दिया है उसी प्रकार यदि भोजन बचाव भी एक क्रांति की तरह होनी चाहिए चाहे गांव के प्रधान को या शहर के में है इन सभी लोगों को सामने आकर इसे एक क्रांति का रूप देना चाहिए से कोई भी व्यक्ति भूखा ना सो सके|