भारतीय कृषि की समझ

आज के परिपेक्ष में देखें तो कृषि का जो योगदान रहा है| वह सराहनीय है|

लेकिन आज की स्थिति पर ध्यान दें तो बिल्कुल अलग है| यदि हम स्वतंत्रता से पूर्व की अवधि को देखें उसके बाद के समय कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण क्षेत्र कृषि् है|

कृषि विशेषज्ञ की की माने तो कृषि का भारत के औद्योगिक विकास तथा राष्ट्रीय आय में गहरा संबंध है|

यदि कृषि के उत्पादन में 1 प्रतिशत की वृद्धि होती है| तो उसके परिणाम स्वरूप औद्योगिक उत्पादन में 0.5 प्रतिशत तथा राष्ट्रीय आय में 0.7 प्रतिशत की वृद्धि होगी|

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खाद्यान्न की दृष्टि से

स्वतंत्र प्राप्ति की तीन दशक में खाद्यान्न के जरिए खाद्यान्न आवश्यकताओ को पूरा करना थां| इसकी आखरी के दशक में भारत में हरित क्रांति उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आंतरिक आत्मविश्वास दिया तथा 1980 में भारत इस मामले में आत्मनिर्भर बन गया|

इसके परिणाम तब नजर आया सन 2002 में सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश बन गया| अगर हम आज के परिपेक्ष में स्थिति देखें तो भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक राष्ट्र है|

कृषि में हरित क्रांति

1960 के दशक आरंभिक चरणों से नई तकनीकी का विकास हुआ| जो विश्व में हरित क्रांति के नाम से जानी गई|

जिससे खाद्यान्न उत्पादन में क्रांति आ गई तथा उत्पादक स्थल 250 प्रतिशत से भी अधिक हो गया|

जिसमें उन्नत किस्म के बीजों का उपयोग बहुत ज्यादा होने लगा|

इसके साथ-साथ रासायनिक उर्वरक परंपरागत उर्वरक का स्थान ले लिया|

उर्वरक को खोलने तथा फसलों को विकास के लिए समय अनुसार सिंचाई पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा|

फसलों को कीड़ों तथा बीमारियों से बचाने के लिए रासायनिक कीटनाशक का उपयोग का प्रचलन में आ गया

हरित क्रांति के प्रभाव

हरित क्रांति का प्रभाव विश्व के देशों में सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़े भारत के परिपेक्ष में देखें तो-

  • सामाजिक प्रभाव :- 1970 के दशक में जहां भारत गेहूं में आत्मनिर्भर बन गया|
    • तो इसके विपरीत फसलों में असंतुलन दिखाई देने लगा|
    • दलहन, तिलहन, मकई, जो के स्थान पर किसान गेहूं तथा चावल की पैदावार ज्यादा करने लगे|
  • खाद्यान्न में विष का स्तर :- भारत खाद्यान्न में विश का स्तर अधिक होना|
    • दरअसल रासायनिक कीटनाशक तथा घास पातनाशको का अनियंत्रित अधिक उपयोग किया गया|
    • जिसके परिणाम स्वरूप भूमि जल तथा वायु में प्रदूषण में वृद्धि हो गई|
    • जिससे खाद्य श्रंखला में विश्व व्याप्त हो गया|

निष्कर्ष

अध्ययन के मुताबिक परिस्थितिकी रूप से कृषि को पर्यावरणीय अनुकूलता के लिए ही हरित क्रांति का सुझाव दिया गया पर इसके बावजूद भी कृषि में आज भी पर्यावरणीय अनुकूलता से परे है|

2 thoughts on “भारतीय कृषि की समझ”

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