पर्यावरण की सुरक्षा वर्तमान समय में किसी भी देश का मूलभूत उद्देश्य है| विकास का पैमाना आर्थिक आधार को बनाकर नाजुक इलाके की गहरी पर्यावरणीय क्षति को नजरअंदाज करना जारी रहा | तो वर्तमान पर्यावरण और भी दयनीय हो सकती है| इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है|
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए एक वक्तव्य में कहा गया कि:–

“परियोजना के व में पेड़ों की कीमत भी जोड़ी आनी चाहिए और पेड़ों की कीमत में सिर्फ लकड़ी की कीमत से ही नहीं बल्कि पर्यावरण में योगदान को शामिल करना चाहिए”
– सुप्रीम कोर्ट
पर्यावरण संकट के विभिन्न पहलू
सन 1992 से लेकर 2015 तक अनेकों पर्यावरण सम्मेलन के बावजूद भी हम इसके प्रति सचेत नहीं हुए|
पर्यावरण को प्रदूषित करने के लिए विकासशील देशों से ज्यादा विकसित देश अग्रणी रहे है|
एक शोध के द्वारा बताया गया कि अमेरिका और चीन मिलाकर तकरीबन 40% वायुमंडल में गंदगी फैलाते हैं|
अगर हम यूरोपियन यूनियन को भी शामिल कर ले तो यह 75% तक पहुंच जाता है|
वायुमंडल में गंदगी का नतीजा है कि आज ग्लेशियर पिघल रहे हैं इसके बावजूद भी हमारा ध्यान उस तरफ नहीं जा रहा है हाल ही में हुए उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर आपदा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है|
एक शोध के मुताबिक सन 1750 के पूर्व औद्योगिक स्तर से अब तक कार्बन डाइऑक्साइड और CH4 के वायुमंडलीय संकेंद्रण क्रमशः 31% से 149% की वृद्धि हुई है|
जल तथा वायु की गुणवत्ता में गिरावट के कारण सांस और जल-संक्रमण रोग की घटनाएं में वृद्धि हुई है|
क्या आप जानते हैं भारत में 70% जल दूषित हो चुका है|
जिसके परिणाम स्वरूप भारत में पर्यावरण प्रदूषण का दो तरफा खतरा है|
एक तो गरीबी के कारण पर्यावरण आपसे और दूसरा खतरा तेजी से बढ़ रहे औद्योगिक क्षेत्र के प्रदूषण हैं|
आप चिपको या अपीको आंदोलन के बारे में भली-भांति परिचित होंगे|
जिसका उद्देश्य हिमालय पर्वत में वनों का संरक्षण करना| कर्नाटक के ही एक ऐसे आंदोलन अप्पी को जिसका अर्थ है “बाहों में भरना”
18 सितंबर 1983 में कर्नाटक में एक घटना घटित हुई| जहां 160 स्त्री पुरुष और उनके बच्चे ने पेड़ों को बाहों में भर लिया और लकड़ी काटने वालों को वहां से भागने के लिए बाध्य होना पड़ा|
इस आंदोलन की एक झलक वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक वक्तव्य से की जा सकती है|
जिसमें कहा गया है कि कब-कब किन पेड़ों को काटना है इसका निर्देश कोर्ट देगा|
पर्यावरणीय समाधान
पर्यावरण के महत्व आर्थिक और सामाजिक सामंजस्य बैठा कर उसे प्रफुल्लित करना ही विश्व के लिए व्यापक और समझदारी का मार्ग प्रशस्त करना ही उचित होगा |
पर्यावरणीय समाधान का अवलोकन करें”-
सबसे पहले अमेरिका ने सन 1969 में एक एक्ट बनाया नेशनल एनवायरमेंट पॉलिसी एक्ट|
भारत ने 1986 पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को पारित किया था|
भारत ने पर्यावरण संरक्षण और महत्व देने के लिए नवीनीकृत ऊर्जा का उत्पादन क्षमता 175 से बढ़ाकर 450 गीगावॉट करने का लक्ष्य है|
साथ में 2.4 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि का उद्धार करने की योजना और इसके साथ साथ कोयला संयंत्रों को बंद करने की पहल को भी आगे बढ़ाया है|
ब्रिटेन ने भी अपने यहां पर ग्रीन औद्योगिकरण की शुरुआत की है| जिसका उद्देश्य 2050 तक कार्बन मुक्त करना है|
विश्व के अनेक देशों ने अपने स्तर पर पर्यावरण को बचाने हेतु अनेक कार्यक्रम और योजनाओं का शिलान्यास किया है|
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