महिलाओं की आर्थिक स्थिति से स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव का Best आकलन 2021

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भारतीय समाज आज भी संकीर्णता के प्रभाव में लिप्त है | फिर भी महिलाओं की आर्थिक स्थिति की बात करें, तो आजादी के बाद ही महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार आया है | और बहुत कुछ आना बाकी है| आइए महिलाओं की आर्थिक स्थिति तथा उनके स्वास्थ्य के पहलू पर एक नजर डालें|

भारतीय संविधान के अनुसार

संविधान में महिलाओं को पुरुष के भारती समान अधिकार दिए गए हैं| जैसे कि अनुच्छेद 14 |

राज्य द्वारा कोई भेदभाव ना करने, अवसरों की समानता समान कार्य के लिए वेतन की गारंटी (अनुच्छेद 39 (घ) ) देता है|

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन मार्च 2010 को महिला आरक्षण बिल पास किया गया|

जिसके अंतर्गत महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई|

वैसे तो भारतवर्ष में नारीवादीता 70 के दशक के दौरान रफ्तार पकड़ी थी| इसके बावजूद भी महिलाओं को आरक्षण मिलने में भी इतना समय लग गया|

महिलाओं की आर्थिक स्थिति Vs स्वास्थ्य

1991 किड्स बैंक रिपोर्ट के अनुसार भारत में डेयरी उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी को रोजगार का 94 प्रतिशत है|

इसीलिए आज भी दूध का उत्पादन (मूल्य) अनाज तथा दाल दोनों के बराबर है|

इसके बावजूद भी हमारे देश में करीब 70% सामान्य महिलाओं को खून की कमी और 37% महिलाओं को गर्भावस्था की समय उचित देखभाल नहीं मिल पाती|

महिलाओं की जीडीपी में योगदान के मामले में वैश्विक औसत 37% है|

इसके विपरीत भारत में महिलाओं का जीडीपी में योगदान 17% है|

यदि भारत में पुरुष तथा महिलाओं का योगदान सामान हो जाए तो 2025 तक भारत की जीडीपी में 2.9 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि हो जाएगी|

कृषि उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी 55 से 60 प्रतिशत तक है|

इसके बावजूद भी ग्रामीण महिलाओं की स्वास्थ्य की स्थिति आज भी प्रश्नचिह्न है|

निष्कर्ष

महिलाओं के समक्ष विद्यमान आर्थिक समानता के प्रदेश में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है|

क्योंकि अर्थव्यवस्था की ऊंचाई पर ले जाने के लिए उनकी भागीदारी आवश्यक है|

अगर आर्थिक भागीदारी बढ़ेगी इसका प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा जिससे उनका स्वास्थ्य बेहतर होगा|

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